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Aravali Conservation: Supreme Court’s Latest Rulings on Mining, Construction, and the New 100-Meter Rule

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Aravali Conservation: Supreme Court’s Latest Rulings on Mining, Construction, and the New 100-Meter Rule

Aravali अरावली पर्वत श्रृंखला और उस पर सुप्रीम कोर्ट (SC) के हालिया फैसलों ने दिल्ली-एनसीआर (Delhi-NCR) समेत पूरे उत्तर भारत के पर्यावरण और विकास के बीच एक नई बहस छेड़ दी है। अरावली को राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली और गुजरात का “सुरक्षा कवच” माना जाता है, जो थार के मरुस्थल को दिल्ली की ओर बढ़ने से रोकता है।

यहाँ अरावली पर सुप्रीम कोर्ट के नवीनतम और सबसे महत्वपूर्ण निर्णयों का विस्तृत विवरण दिया गया है:

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1. Aravali अरावली की नई परिभाषा और ‘100 मीटर’ का नियम (2024-25)

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में अरावली पहाड़ियों को परिभाषित करने के लिए केंद्र सरकार द्वारा सुझाए गए नए मानदंडों को स्वीकार कर लिया है।

  • नया मानदंड: अब केवल उन्हीं भू-आकृतियों को ‘अरावली पहाड़ी’ माना जाएगा जिनकी ऊंचाई स्थानीय सतह से 100 मीटर या उससे अधिक है।

  • चिंता का विषय: विशेषज्ञों और पर्यावरणविदों का कहना है कि राजस्थान में अरावली का लगभग 90% हिस्सा 100 मीटर से कम ऊंचाई का है। इस फैसले के बाद, इन क्षेत्रों को कानूनी सुरक्षा कवच (Forest Conservation Act) से बाहर होने का खतरा है, जिससे वहां खनन और निर्माण की राह आसान हो सकती है।


2. खनन (Mining) पर बड़ा फैसला: नई लीज पर रोक

सुप्रीम कोर्ट ने अरावली क्षेत्र में हो रहे अंधाधुंध खनन को लेकर कड़ा रुख अपनाया है:

  • नई लीज पर प्रतिबंध: कोर्ट ने आदेश दिया है कि जब तक अरावली के लिए ‘सस्टेनेबल माइनिंग मैनेजमेंट प्लान’ (MPSM) तैयार नहीं हो जाता, तब तक किसी भी नई खनन लीज या पुरानी लीज के नवीनीकरण (Renewal) की अनुमति नहीं दी जाएगी।

  • वैज्ञानिक मैपिंग: पर्यावरण मंत्रालय (MoEFCC) को निर्देश दिया गया है कि वह AI और सैटेलाइट इमेजिंग के जरिए पूरी अरावली रेंज की मैपिंग करे ताकि यह तय हो सके कि कहाँ खनन संभव है और कहाँ बिल्कुल प्रतिबंधित।

  • पुरानी लीज: जो खनन वर्तमान में कानूनी रूप से चल रहे हैं, वे जारी रह सकते हैं, लेकिन उन्हें कड़े पर्यावरणीय नियमों का पालन करना होगा।


3. दिल्ली-एनसीआर में अवैध निर्माण पर ‘बुलडोजर’ एक्शन

हरियाणा (विशेषकर फरीदाबाद और गुरुग्राम) के अरावली क्षेत्र में हुए अवैध निर्माणों पर सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में लगातार कार्रवाई हो रही है:

  • खोरी गांव और फार्महाउस: कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि वन भूमि (Forest Land) पर बना कोई भी निर्माण—चाहे वह गरीब की झुग्गी हो या किसी रसूखदार का फार्महाउस—उसे हटाया जाएगा।

  • इको-सेंसिटिव जोन: दिल्ली से सटे इलाकों (जैसे असोला भट्टी और सूरजकुंड के आसपास) को पूरी तरह संरक्षित घोषित किया गया है ताकि दिल्ली की हवा को साफ रखने वाला यह ‘ग्रीन लंग’ (Green Lung) बचा रहे।


4. अरावली क्यों है दिल्ली के लिए “लाइफ लाइन”?

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसलों में बार-बार अरावली के महत्व को रेखांकित किया है:

| मरुस्थलीकरण रोकना | यह थार रेगिस्तान की रेत और गर्म हवाओं को दिल्ली-एनसीआर में आने से रोकता है। |

| भूजल पुनर्भरण (Groundwater) | अरावली की चट्टानें बारिश के पानी को सोखकर जमीन के नीचे भेजती हैं, जिससे एनसीआर का वाटर लेवल बना रहता है। |

| प्रदूषण नियंत्रण | दिल्ली की जहरीली हवा को फिल्टर करने के लिए अरावली के जंगल प्राकृतिक एयर प्यूरीफायर का काम करते हैं। |

| जैव विविधता | यहाँ तेंदुए (Leopards), नीलगाय और सैकड़ों प्रजातियों के पक्षी रहते हैं। |


निष्कर्ष और भविष्य की राह

सुप्रीम कोर्ट के ये फैसले अरावली को बचाने की दिशा में महत्वपूर्ण हैं, लेकिन 100 मीटर वाली नई परिभाषा ने पर्यावरण प्रेमियों को थोड़ा डरा दिया है। कोर्ट ने साफ किया है कि “विकास की कीमत पर पर्यावरण की बलि नहीं दी जा सकती।” अब गेंद सरकार के पाले में है कि वह किस तरह से सस्टेनेबल माइनिंग प्लान तैयार करती है।

 

 

 

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