भारत में दशहरा उत्सव 2025
2 अक्टूबर 2025 को भारत में दशहरा, जिसे विजयादशमी के नाम से भी जाना जाता है, पूरे देश में अपार उत्साह और भक्ति के साथ मनाया गया। यह पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है, जो दो प्रमुख कथाओं से जुड़ा है: भगवान राम द्वारा लंकापति रावण का वध और मां दुर्गा द्वारा राक्षस महिषासुर का संहार। यह दिन भारतीय संस्कृति में धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक एकता का उत्सव है। देश के कोने-कोने में रावण दहन, शस्त्र पूजा, रामलीला, और दुर्गा विसर्जन जैसे आयोजनों ने इस पर्व को जीवंत और रंगीन बनाया।
क्षेत्रीय उत्सवों की झलक
दिल्ली: रावण दहन और रामलीला

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में दशहरा उत्सव का केंद्र रामलीला मैदान रहा, जहां लाखों लोग विशाल रावण, कुंभकरण, और मेघनाद के पुतलों के दहन को देखने के लिए एकत्र हुए। इन पुतलों की ऊंचाई 50 से 100 फीट तक थी, और पर्यावरण की सुरक्षा के लिए ग्रीन पटाखों का उपयोग किया गया। दिल्ली के विभिन्न हिस्सों में आयोजित रामलीला मंचनों में स्थानीय और राष्ट्रीय स्तर के कलाकारों ने भगवान राम के जीवन और रावण के वध की कहानी को जीवंत किया। दिल्ली के मुख्यमंत्री ने एक संदेश में कहा, “दशहरा हमें सत्य, न्याय और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है।” इसके अलावा, दिल्ली के बाजारों में दशहरे के मेले लगे, जहां बच्चों के लिए झूले, खानपान के स्टॉल, और हस्तशिल्प की दुकानें आकर्षण का केंद्र रहीं।
मध्य प्रदेश: शस्त्र पूजा और सांस्कृतिक कार्यक्रम
मध्य प्रदेश में दशहरा उत्सव परंपरागत और आधुनिक रंगों का मिश्रण रहा। भोपाल में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने राजभवन में शस्त्र पूजा की और कहा, “यह पर्व हमें न केवल बुराई पर विजय की प्रेरणा देता है, बल्कि समाज में एकता और शांति को भी बढ़ावा देता है।” ग्वालियर में चंबल नदी के तट पर रावण दहन का आयोजन हुआ, जिसमें हजारों लोग शामिल हुए।उज्जैन में महाकाल मंदिर के पास विशेष पूजा-अर्चना और जुलूस निकाले गए, जिसमें भक्तों ने भगवान राम और मां दुर्गा की स्तुति की।
पश्चिम बंगाल: दुर्गा पूजा का समापन
पश्चिम बंगाल में दशहरा दुर्गा पूजा के समापन के रूप में मनाया गया। कोलकाता, हावड़ा, और सिलीगुड़ी में मां दुर्गा की मूर्तियों का विसर्जन नदियों और तालाबों में धूमधाम से किया गया। कोलकाता के बागबाजार और कुमर्तुली जैसे इलाकों में ढाक की थाप और नृत्य-नाटक ने उत्सव को और भव्य बनाया। स्थानीय पंडालों में थीम-आधारित सजावट ने पर्यटकों और भक्तों को आकर्षित किया। इस बार कई पंडालों ने पर्यावरण संरक्षण और सामाजिक मुद्दों जैसे जलवायु परिवर्तन और महिला सशक्तिकरण को अपनी थीम बनाया। विसर्जन जुलूसों में महिलाओं और बच्चों ने विशेष रूप से हिस्सा लिया, और सड़कों पर सांस्कृतिक प्रदर्शन देखने को मिले।
कर्नाटक: मैसूर दशहरा की शाही परंपरा

कर्नाटक के मैसूर में दशहरा उत्सव विश्व प्रसिद्ध है, और इस बार भी यह अपनी शाही भव्यता के लिए चर्चा में रहा। मैसूर पैलेस को 1 लाख से अधिक रंग-बिरंगी रोशनी से सजाया गया, जो रात में एक जादुई दृश्य प्रस्तुत करता था। विजयादशमी के दिन शाही जुलूस निकाला गया, जिसमें सजे-धजे हाथी, घोड़े, और परंपरागत वेशभूषा में सैनिक शामिल थे। चामुंडेश्वरी मंदिर में विशेष पूजा की गई, और जुलूस का समापन बन्नीमंतप में हुआ, जहां परंपरागत बन्नी वृक्ष की पूजा की गई। इस बार मैसूर दशहरे में देश-विदेश से लाखों पर्यटक शामिल हुए, जिसने स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी बढ़ावा दिया।
उत्तर प्रदेश: अयोध्या में राममय माहौल
उत्तर प्रदेश के अयोध्या में दशहरा उत्सव का विशेष महत्व था, क्योंकि यह भगवान राम की नगरी है। राम जन्मभूमि मंदिर में विशेष पूजा और हवन का आयोजन हुआ, जिसमें हजारों भक्तों ने हिस्सा लिया। रामलीला मंचनों में भगवान राम, सीता, और लक्ष्मण के किरदारों ने दर्शकों का मन मोह लिया। वाराणसी में गंगा घाटों पर रावण दहन और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए गए। लखनऊ में नवाबी परंपराओं के साथ दशहरा मनाया गया, जहां हजरतगंज और गोमती नगर में रावण के पुतलों का दहन हुआ। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अयोध्या से संदेश दिया, “दशहरा हमें राम के आदर्शों को जीवन में अपनाने की प्रेरणा देता है।”
अन्य राज्यों में उत्सव
- हिमाचल प्रदेश: कुल्लू का दशहरा अपनी अनूठी परंपराओं के लिए जाना जाता है। यहां सात दिनों तक चलने वाले मेले का समापन विजयादशमी पर हुआ, जिसमें स्थानीय देवी-देवताओं की शोभायात्रा निकाली गई।
- पंजाब: अमृतसर में स्वर्ण मंदिर के पास विशेष प्रार्थनाएं और शस्त्र प्रदर्शनी आयोजित की गई। सिख समुदाय ने शस्त्र पूजा के साथ दशहरा मनाया।
- गुजरात: नवरात्रि के समापन के साथ दशहरा उत्सव में गरबा और डांडिया की धूम रही। अहमदाबाद और वडोदरा में रावण दहन के साथ सांस्कृतिक कार्यक्रम हुए।
सामाजिक और धार्मिक महत्व
दशहरा भारतीय संस्कृति में एकता और नैतिकता का प्रतीक है। यह पर्व हमें सिखाता है कि सत्य और धर्म की राह पर चलकर हर बाधा को पार किया जा सकता है। भगवान राम की रावण पर विजय और मां दुर्गा की महिषासुर पर जीत की कहानियां आज भी लोगों को प्रेरित करती हैं। इस दिन लोग अपने परिवार और समुदाय के साथ मिलकर उत्सव मनाते हैं, जिससे सामाजिक बंधन मजबूत होते हैं। बच्चों के लिए मेले और झूले आकर्षण का केंद्र रहे, जबकि बुजुर्गों ने मंदिरों में पूजा-अर्चना की।
पर्यावरण संरक्षण पर जोर
इस बार दशहरे के आयोजनों में पर्यावरण संरक्षण पर विशेष ध्यान दिया गया। दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु, और चेन्नई जैसे शहरों में रावण के पुतलों के लिए बांस, कागज, और अन्य पर्यावरण-अनुकूल सामग्री का उपयोग किया गया। कई संगठनों ने “ग्रीन दशहरा” अभियान चलाया, जिसमें पेड़ लगाने और स्वच्छता अभियानों को बढ़ावा दिया गया। दिल्ली में कुछ आयोजकों ने डिजिटल रावण दहन का प्रदर्शन किया, जिसमें लेजर और प्रोजेक्शन तकनीक का उपयोग हुआ। पश्चिम बंगाल में दुर्गा मूर्तियों के लिए पर्यावरण-अनुकूल रंगों और सामग्रियों का उपयोग बढ़ा।
आर्थिक प्रभाव
दशहरा उत्सव ने स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी बढ़ावा दिया। मेलों, बाजारों, और पर्यटक स्थलों पर व्यापारियों को अच्छा मुनाफा हुआ। हस्तशिल्प, मिठाई, और पटाखों की दुकानों पर भारी भीड़ देखी गई। मैसूर, अयोध्या, और कोलकाता जैसे शहरों में पर्यटकों की संख्या में वृद्धि से होटल और परिवहन उद्योग को लाभ हुआ।
दशहरा 2025 भारत में एकता, आध्यात्मिकता, और सांस्कृतिक समृद्धि का प्रतीक बनकर उभरा। यह पर्व न केवल धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखता है, बल्कि समाज को एकजुट करने और सकारात्मकता फैलाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। देशभर में लोगों ने रावण दहन, शस्त्र पूजा, और सांस्कृतिक आयोजनों के माध्यम से बुराई पर अच्छाई की जीत का उत्सव मनाया। पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता और सामाजिक एकता के संदेश ने इस बार के दशहरे को और भी खास बना दिया।