Lieutenant Colonel Prasad Purohit सनातन विरोधी गैंग को सेना का करारा तमाचा , लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद श्रीकांत पुरोहित
मालेगांव ब्लास्ट केस: एक विवादास्पद साजिश का अनावरण और न्याय की लंबी लड़ाई
2008 के मालेगांव ब्लास्ट केस ने भारतीय राजनीति और न्याय व्यवस्था को प्रभावित किया। इस मामले में छह निर्दोषों की मौत और सैकड़ों घायलों के बीच, लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद श्रीकांत पुरोहित—एक समर्पित सेना अधिकारी—को मुख्य आरोपी बनाकर फंसाया गया। यह केस न केवल एक आतंकी घटना की जांच था, बल्कि राजनीतिक साजिशों का प्रतीक भी बन गया, जहां यूपीए सरकार (जिसका नेतृत्व कांग्रेस कर रही थी) ने “भगवा आतंक” नैरेटिव फैलाने का काम किया । हाल के अदालती फैसले और पुरोहित की पदोन्नति ने इस विवाद को फिर से सुर्खियों में ला दिया है।
पुरोहित का बैकग्राउंड: एक सच्चे सैनिक की सेवा

प्रसाद पुरोहित 1994 में मराठा लाइट इन्फैंट्री में कमीशन प्राप्त हुए। जम्मू-कश्मीर में 2002-2005 तक आतंकवाद विरोधी अभियानों में सक्रिय रहे, जहां उन्होंने खुफिया सूचनाओं के जरिए कई हमलों को नाकाम किया। स्वास्थ्य कारणों से वे मिलिट्री इंटेलिजेंस में स्थानांतरित हुए, जहां उनकी भूमिका आतंकी समूहों में घुसपैठ करने की थी। पुरोहित ने दावा किया कि अभिनव भारत जैसे संगठनों से उनका संपर्क सेना की मंजूरी से था, जो खुफिया संचालन का हिस्सा था। लेकिन 2008 में यह “सेवा” एक राजनीतिक हथियार बन गई।
यूपीए सरकार का रोल: “भगवा आतंक” नैरेटिव की शुरुआत
29 सितंबर 2008 को मालेगांव में हुए ब्लास्ट की जांच महाराष्ट्र एटीएस ने शुरू की। पुरोहित को अक्टूबर में गिरफ्तार किया गया, साथ में साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर और अन्य। आरोप थे: RDX चुराना, बम बनाना, और साजिश रचना। लेकिन कई रिपोर्ट्स और पुरोहित के बयानों से उभरा कि यह गिरफ्तारी राजनीतिक दबाव में हुई।
- राजनीतिक साजिश के आरोप: यूपीए सरकार ने “saffron terror” थ्योरी को बढ़ावा देने का काम किया, ताकि हिंदू संगठनों को बदनाम किया जा सके। पुरोहित ने अदालत में कहा कि एटीएस अधिकारियों (जैसे हेमंत करकरे और परम बीर सिंह) ने उन पर RSS, VHP, और योगी आदित्यनाथ जैसे नेताओं को फंसाने का दबाव डाला। X (पूर्व ट्विटर) पर हाल की चर्चाओं में इसे कांग्रेस की “एंटी-हिंदू साजिश” कहा गया, जहां सैनिक को भी नहीं बख्शा गया। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि यह 2009 के लोकसभा चुनावों से पहले अल्पसंख्यक वोट बैंक मजबूत करने की कोशिश थी।
- सेना पर दबाव: सेना ने पुरोहित की गिरफ्तारी का विरोध किया, लेकिन यूपीए के दबाव में उन्हें सौंप दिया गया। एक आंतरिक रिपोर्ट में MI अधिकारी पर पुरोहित को गलत तरीके से ATS को सौंपने का आरोप लगा। यह एक सैनिक के सम्मान पर सीधा हमला था, जो देश की सुरक्षा के लिए जीवन दांव पर लगा चुका था।
यातना और लंबी कैद: न्याय की प्रतीक्षा

पुरोहित ने 2024 के अदालती बयान में खुलासा किया कि ATS ने उनका दायां घुटना तोड़ा, बिजली के झटके दिए, और 9 साल जेल में रखा बिना ठोस सबूत के। साध्वी प्रज्ञा को भी यौन उत्पीड़न और शारीरिक यातनाओं का शिकार बनाया गया। 2011 में NIA को केस मिला, लेकिन जांच में खामियां रहीं: RDX के घर पर होने का कोई प्रमाण नहीं, मोटरसाइकिल का लिंक अस्पष्ट।
सुप्रीम कोर्ट ने 2017 में जमानत दी, लेकिन पूर्ण बरी होना 31 जुलाई 2025 को हुआ। NIA कोर्ट ने कहा: “मजबूत संदेह सबूत की जगह नहीं ले सकता।” सभी सात आरोपी बरी। अदालत ने पुरोहित पर “कार्यालय के दायित्वों का उल्लंघन” का टिप्पणी की, लेकिन आपराधिक आरोपों को खारिज कर दिया।
बरी होने के बाद: पदोन्नति और स्वागत
बरी होने पर पुरोहित का पुणे में भव्य स्वागत हुआ—”जय श्री राम” के नारों के साथ। 26 सितंबर 2025 को उन्हें कर्नल पद पर पदोन्नत किया गया, 2021 से बैकडेटेड, जिससे खोई वरिष्ठता बहाल हुई। पुरोहित ने कहा: “देश सर्वोच्च है।” उनकी पत्नी अपर्णा ने समर्थन का श्रेय दिया। X पर इसे “सेना का तमाचा” कहा गया, लेकिन कुछ ने कांग्रेस से माफी की मांग की।
चल रही चुनौतियां

पीड़ित परिवारों ने 18 सितंबर 2025 को बॉम्बे हाईकोर्ट में अपील दाखिल की, जो प्री-एडमिशन स्टेज पर है। यह केस न्याय की धीमी गति और राजनीतिक हस्तक्षेप को उजागर करता है। पुरोहित की किताब The Man Betrayed? (2023) में जांच पक्षपात का जिक्र है।
हिंदू-विरोध से देश-विरोध तक
यह केस दर्शाता है कि कैसे राजनीतिक लाभ के लिए संस्थाओं का दुरुपयोग हो सकता है। यूपीए पर “हिंदू-विरोधी” होने के आरोप हैं, जो देश की सुरक्षा को कमजोर करने वाले साबित हुए हैं —एक सैनिक को फंसाकर। राजनीति से ऊपर न्याय और राष्ट्रहित होना चाहिए। पुरोहित जैसे सैनिकों का सम्मान हर हाल में होना चाहिए |
जय हिंद!